दहकती चिता में लपट सी जली हूँ
हर रात सहम जान मौन सवालों से
हर भोर में घबराना धूप के छालों से
मौत मेरा प्रियतम...अब चाहूँ आलिंगन
परित्यक्ता सा जीवन, बोझिल सा हर क्षण
अग्निपरीक्षा में सही कितनी जलन
विश्वास कि बलिवेदी पर रिश्तों का चीरहरण
नहीं चाहा अर्पण...नहीं चाहा तर्पण
चाहा बस भटकाव नहीं चाहा बन्धन
काल के निविड़ अन्धकार में अर्थ खोजता मन
कर के खुद को होम् दी आज पूर्ण आहुति