शायद
इस जिंदगी में
एक ऐसा दिन भी आएगा
जब हम एक दूसरे के साथ हँस सकेंगे
कुछ पुराने किस्से याद करके मैं तुम्हें चिढ़ा सकूंगी
कुछ पुराने गाने साथ में गा सकेंगे
शायद तुम्हारा सुर तब तक थोड़ा ठीक हो जाए
शायद बहुत सालों बाद कभी अकेले बैठोगे
तो मेरी किसी शरारत पे हँस सकोगे
और हो सकता है मुझे फ़ोन भी कर लो
या शायद ये भी हो सकता है
किसी दिन किसी दोस्त से पता चले
कि मेरा ऊपर से बुलावा आ गया था
और तुम्हें अफ़सोस हो...
यूं ताउम्र रूठे नहीं रहना चाहिए था...
11 comments:
कुछ पुराने गाने साथ में गा सकेंगे
शायद तुम्हारा सुर तब तक थोड़ा ठीक हो जाए
Great. In fact the whole thing !!
क्या लिख दिया ?
रात के दूसरे छोर पर सुबह हमेशा धूप बिखरने को बेताब होती है.
गहरी रचना है.
यह पंक्ति बहुत गहरे भाव लिए हुए है.. सुंदर रचना .. बधाई..
और तुम्हें अफ़सोस हो...
यूं ताउम्र रूठे नहीं रहना चाहिए था.
आख़िर में दिल को छू गई ये पंक्तियाँ.
शायद बहुत सालों बाद कभी अकेले बैठोगे
तो मेरी किसी शरारत पे हँस सकोगे
और हो सकता है मुझे फ़ोन भी कर लो
......
एक पकिस्तिनी शायर है परवीन शाकिर ...तुम्हे पढता हूँ तो उनकी याद आती है बस थोड़ा लफ्जों का इस्तेमाल ओर उर्दू के सही लफ्ज़ चुनना ......
पर एक ईमानदारी ओर बेबाकी है लिखने मे....एक शेर याद आया तुम्हे पद्के.....
"वो क्या था जिसे हमने ठुकरा दिया
मगर उम्र भर हाथ मलते रहे "-कैफी आज़मी.
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bahut khoobsurat ehsaas bhari rachna...bahut achchi lagi.
आपको पढ़कर गुलजार साहब की कही एक बात याद आ गई, एहसास गेंहू की फसल की तरह है जिसे पकने से पहले काटना चाहिए,एक किस्म के कच्चेपन के रहते...रोटियां अच्छी बनती है. इन कविताओं में भी एहसास का कुछ वैसा ही कच्चापन है...कमराए (पकने से पहले का कच्चापन) आम की तरह...मैंने ब्लॉग पर पसरे एक के बाद एक तमाम आम खा लिए...
जायके का विवरण अगली पोस्ट पर...
बहतरीन रचना और ईमानदार कोशिश.
zindagii khoobsoorat aur ghamgeen bhii magar donon ka apana maza hai... maut donon se judaa hai aur gunaah bhii...
Madam!!! r u real????
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