कुछ वक्त का तकाजा कुछ आरजुओं की शरारत
हर राह के आख़िर में अपना घर नज़र आता है
तुम पास से लगते हो जब झुकती हैं पलकें
ख्यालों का ये दीवानापन बेतरहा तडपता है
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कुछ सफ्हे शिकायत करते हैं
तुम्हारे सदियों पहले जाने की
कुछ लम्हे कोशिश करते हैं
तुम्हें याद कर मुस्कुराने की
उन राहों की खामोशियों सी
कुछ गीतों में घुल जाती हूँ
ख़ुद को खोकर जाने कैसे
वो हर लम्हा जी जाती हूँ
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