मिल के बनाते हैं
एक घर
कुछ कुछ हमारे सपनो के जैसा
रजनीगंधा के फूलों सा महकता
चांदनी रातों सा दमकता
बादलों के जैसा फर्श
सूरज की किरणों की हलकी गर्मी
खिलखिलहटें गूँजें जहाँ
मुहब्बत गुनगुनाती रहे
एक घर जहाँ खुशियाँ
बिना दस्तक दिए आ सके
जहाँ ग़मों को आने को
दरार भी न मिले
जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें
तो लगे
मंजिल मिल गई है
Jindagi ehsaason ka pulinda hi to hai, kabhi fursat me kabhi jaldi me bandh leti hun apne dupatte ke chor mein ek lamha aur ek ehsaas fir se kavita ban jaata hai. Rishton ko parat dar parat mein jeeti hun main. Jindagi yun hi nahin guzar jaati, meri saanson mein utar kar dhadkanon ko ek geet dena hota hai use.
Thursday, July 24, 2008
Sunday, July 06, 2008
क्यों?
अब नहीं आतीं
रात भर जाग के बात करने वाली रातें...
अब नहीं होते
खामोशी वाले कितने घंटे...
अब नहीं मिलते
मुश्किल से निकाले हुए पाँच मिनट...
अब नहीं आता
चार चार पन्नो का फ़ोन बिल...
अब नहीं जगाती
डर लगने पर किसी भी पहर तुम्हें...
अब नहीं करती
बारिशों में भीगने की जिद...
अब नहीं मांगती
तुम्हारी जूठी कॉफी...
अब नहीं खरीदती
रजनीगन्धा के फूल हर शाम...
फ़िर भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ
क्यों?कैसे?
शायद...ऐसे ही :)
रात भर जाग के बात करने वाली रातें...
अब नहीं होते
खामोशी वाले कितने घंटे...
अब नहीं मिलते
मुश्किल से निकाले हुए पाँच मिनट...
अब नहीं आता
चार चार पन्नो का फ़ोन बिल...
अब नहीं जगाती
डर लगने पर किसी भी पहर तुम्हें...
अब नहीं करती
बारिशों में भीगने की जिद...
अब नहीं मांगती
तुम्हारी जूठी कॉफी...
अब नहीं खरीदती
रजनीगन्धा के फूल हर शाम...
फ़िर भी तुमसे उतना ही प्यार करती हूँ
क्यों?कैसे?
शायद...ऐसे ही :)
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