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उसके हाथों की लकीरें
बिल्कुल मेरे हाथ की लकीरों जैसी थी...
जैसे खुदा ने हूबहू एक सी किस्मतें दी हों हमें
पर मेरी किस्मत में उसका हाथ नहीं था
न उसकी किस्मत में मेरा
कहीं लकीरों के हेर फेर में खुदा ने गलती कर दी थी
इसलिए उसके हाथ में मेरे नाम की लकीर नहीं थी
न मेरे हाथ में उसके नाम की
इसलिए एक होते हुए भी
हमारा इश्क जुदा था...हमारे इश्क को जुदा होना था
मगर जिंदगी के एक मोड़ पर
इन्तेजार करता मेरा हमसफ़र मुझे मिल गया
क्या मैं उम्मीद करूँ की उसे भी उसका हमसफ़र मिलेगा?