Monday, October 05, 2009

हाथ की लकीरें


उसके हाथों की लकीरें
बिल्कुल मेरे हाथ की लकीरों जैसी थी...
जैसे खुदा ने हूबहू एक सी किस्मतें दी हों हमें

पर मेरी किस्मत में उसका हाथ नहीं था
न उसकी किस्मत में मेरा

कहीं लकीरों के हेर फेर में खुदा ने गलती कर दी थी
इसलिए उसके हाथ में मेरे नाम की लकीर नहीं थी
न मेरे हाथ में उसके नाम की

इसलिए एक होते हुए भी
हमारा इश्क जुदा था...हमारे इश्क को जुदा होना था

मगर जिंदगी के एक मोड़ पर
इन्तेजार करता मेरा हमसफ़र मुझे मिल गया

क्या मैं उम्मीद करूँ की उसे भी उसका हमसफ़र मिलेगा?

Friday, July 17, 2009

एक बारिशों वाली शाम के ख्याल और सवाल

कुछ लोगों को भूलने के लिए एक जिंदगी कम पड़ जाती है

हर इश्क की कहानी अलग होती है, हर टूटने की हदें अलग अलग...
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mature होना, प्रैक्टिकल होना...यानि की उसे याद करते हो करो, मगर किसी से मत कहो कि उसकी याद आई है, अपने सबसे करीबी दोस्त से भी नहीं...सबके हिसाब से तुम उसे भूल गए हो...बिल्कुल याद नहीं करते।

भीड़ में कुछ लोगों के चेहरे किसी ऐसे शख्स की याद दिला सकते हैं, जिससे उसका चेहरा बिल्कुल भी नहीं मिलता।

क्यों लगता है कि वो आँखें आपको देख रही हैं, और आप ऐसी सुनसान राहों पर मुड़ कर देखते हैं जहाँ यकीन हैं कि कोई नहीं होगा।

क्या किसी को याद करने से उसे इस बात का अहसास हो सकता है कि कोई उसे याद करता है?

प्यार का मुकम्मल होना क्या होता है?

अगर तुम्हारे साथ बिताया एक लम्हा सारी जिन्दगी था तो अब जब तुम मेरे साथ नहीं हो क्या है?

क्या सारे रास्ते कहीं न कहीं आपस में जुड़े नहीं होते?

क्या प्यार कि कोई constanct value होती है?

what is the maximum number of times someone can fall in love?

अगर मैं किसी लड़के से प्यार करती हूँ इसका मतलब क्या ये है कि मैं अपने मम्मी पापा से कम प्यार करने लगी हूँ?

क्या पुनर्जन्म की ये कहानियाँ सच्ची हैं...क्या अगले जन्म मुझे तुम्हारी याद रहेगी?

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बहुत सी बातें अपनी, दोस्तों की, तुम्हारी, किसी और की, डायरी के हाशिये पर लिखी हुयी, फ़िल्म का कोई डायलोग ...शायरी का कोई हिस्सा
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प्यार में कितना कुछ सच में घटता है...और कितना कुछ हमारे मन में...सच्चाई की लकीर कहाँ खींची जाती है?

Thursday, February 05, 2009

पुराने शायदों में...

इत्तेफाक ही है कि कल ही ये आर्टिकल आई और आज ही वैलेंटाइन पर इतना बड़ा बवाल सुन रही हूँ...
पहले तो रविश जी को धन्यवाद कि उन्होंने अपने आर्टिकल में मेरा जिक्र किया...रविश जी कहते हैं कि वसंत, वैलेंटाइन और बदमाश एक साथ ही क्यों आते हैं? बिल्कुल वाजिब सवाल है...जवाब देते हुए वो ब्लॉग जगत में बिखरे प्यार के रंगों का जिक्र करते हैं...इसी में मेरा भी जिक्र आया है :)

कल के हिन्दुस्तान दैनिक में छपी इस ख़बर का मुझे पता भी नहीं चलता अगर रोहित ने ब्लॉग पर कमेन्ट में नहीं लिखा होता...यही नहीं इस आर्टिकल का लिंक भी मुझे मेल किया...तो मैं यहाँ रोहित का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ।

इस ब्लॉग में वाकई सिर्फ़ प्यार के रंगों को बिखेरने का ही मन करता है...कुछ उदास से रंग यादों में घुले हुए। कुछ कल्पनाएँ कि यूँ होता तो क्या होता...कुछ अटके हुए शायद...

जेएनयू के कुछ रास्ते हैं जहाँ मैं खोयी हुयी रह गई हूँ...यहाँ अक्सर मैं उस मैं से मिले हुए पलों को संजोती हूँ...वो मेरी जिंदगी का सबसे खुशनुमा वक्त था...वहां कि यादें कभी मुस्कुराने को कहती है, कभी रुला ही देती हैं...चाहे वो मामू के ढाबे पर कि गुझिया हो...टेफ्ला कि वेज बिरयानी हो या गंगा ढाबा की मिल्क कॉफी। इन सबके बीच कितनी अकेली रातें हैं जिनमें मैं उस मैं के सबसे करीब थी...एक fm रेडियो होता था, पीली पीली रौशनी में भीगी सड़कें....

उफ्फ्फ्फ़ याद आयेंगी तो ठहरने का नाम ही नहीं लेती...चलो आज पार्थसारथी पर ही किस्सा ख़त्म करती हूँ :)

आप वो आर्टिकल पढिये :)

Saturday, January 31, 2009

तारीख



मेरे कमरे की एक दीवार पर उसने पेंसिल से लिख दिया था, आई लव यू, और उसके नीचे साइन करके तारीख लिख दी...२१/०९/०५
समझ में ये नहीं आता है की तारीख क्यों लिखी...क्या उस दिन के लिए जिस दिन से उसे मुझसे प्यार हुआ था? पर ऐसा कोई खास दिन महसूस तो नहीं हुआ...यूँ लगा की वो हमेशा से मुझे जानती है, और मैं हमेशा से उससे प्यार करता हूँ। ये हमेशा भी बड़ा अजीब सा शब्द है...
तारीख उस दिन की तो नहीं जिस दिन उसे मुझसे फ़िर से प्यार हुआ था?