आज मैंने नयी कलम खरीदी, निब देखने के लिए कागज पर घसीटा, बिना ध्यान दिए...फिर अचानक डर लगा कि जाने क्या लिखा होगा, कनखियाँ चुरा कर नीचे ताका...कागज पर मेरा ही नाम था. अरसा बाद, लगा जैसे अपने आप को फिर से पा लिया है. तुम्हारे नाम, तुम्हारी जिंदगी, तुम्हारी यादों और हर आदत से निकल आई हूँ. सुकून हुआ, यूँ तुम्हें याद कर के तुम्हें भूलने का.
अब लगता है मैं तुम्हें पूरी तरह भूल चुकी हूँ. शायद.
10 comments:
क्या कोई किसी को भुला सकता है क्या ? कभी नहीं , बस समय का हेरफेर होता है । आप बढ़िया लिखती हैं निरन्तरता बनाये रखिए ।
किसी को बार बार भुलाना ! तब तो याद रखना ही श्रेयस्कर है ।
आदतन हमलोग अपना ही नाम लिखते हैं और देखो तुमने कितनी ओरिजिनल बात कर दी...
एक झलक तो मिली यह ब्लॉग ज्यादा क्लोज़ को हार्ट है.
सच कहा है, हर दिल की कहानी, बधाई
कलम, नाम और नोटबुक के पिछले पन्ने...बडे दिली अहसास है ये..
मेरी भी एक पुरानी कविता कुछ इसी पर थी..
http://pupadhyay.blogspot.com/2008/12/blog-post_4440.html
howz your life moving and howz your job? aajkal kaafi busy busy rahti ho..achha hai wasie...
"sukoon hua , yun tumhein yaad karke phir se bhoolne kaa....."
:)
hota hai zindagi me aisi sachchi ghatnaayein ...kabhi dhup kabhi chao yehi to zindagi ke do pahlu hai ...aap hamesha dil ki suno aur karo apne man ki....apna jo kiya woh aapka apna ek achcha tajarba hoga... zahni sukoon mila hoga aapko aisa karne ke baad...
Well..nice piece of writing, nice to read, nice to feel, nice to share,
and nice to bring back some nice memories of the past.
i am delighted I found you. aap bahut accha liktin hain :)
झूठ....
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