Friday, April 25, 2008

यादें...



दुपट्टे की ओट/ सुबह की धूप

एक प्याली चाय/ इंतज़ार

उसके ना कहने के बाद भी


शब्दों के साथ खेलना

खामोशी महसूस करना

तुम्हारे लिए, तुम्हारे साथ

जीना...


जिंदगी के इन लम्हों के साथ

चोर सिपाही खेलना

थके थके लम्हों को थपकियाँ देकर सुलाना

कतरा कतरा साँझ

किताबों में बंद करना

हरसिंगार की खुशबू

यादों में सहेजना

कविता सी बन जाना

प्यार, शायद

1 comment:

डॉ .अनुराग said...

खूबसूरत बहुत छोटा सा शब्द है .इस कविता के लिए ...जब तुम ऐसे लिखती हो बहुत अच्छा लगता है...बिंदास.......बोले तो...