Saturday, May 24, 2008

तुमसे कुछ पूछूँ...

क्या तुम्हें भी मिलते हैं?
मेज़ की दराज साफ करते हुए
हँसी के कुछ टुकडे, तस्वीरों में

क्या कभी दो कप चाय कह देते हो
अनजाने में...
और ख़ुद ही पी लेते हो

क्या कभी लगता है
कि मैं फ़िर से लेट हो गई हूँ
आ जाऊँगी थोडी देर में...

क्या तुम अब भी बारिशों में
पकोड़े खाने और कॉफी पीने जाते हो
उनका स्वाद अब भी वैसा ही लगता है?


क्या तुम्हें भी लगता है
कि गलियाँ सवाल करती है
अकेले क्यों आए हो?

इतने सवालों का तो खैर क्या करोगे
बस इतना बता दो...
क्या उस कमरे को
अब भी घर कहते हो?

19 comments:

अमिताभ मीत said...

Simple. And beautiful.

डॉ .अनुराग said...

bahut dino bad padha tumhe .......par vahi zindgi se bheegi hui kavita...vahi jajbaati saval.....

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

क्या तुम्हें भी लगता है
कि गलियाँ सवाल करती है
अकेले क्यों आए हो?

Bahut sunder rachna hai.Ishwar aapki sabhii tamannayein poori kare.Aap yuun hi likhtii rahein...

Anonymous said...

बस इतना बता दो...
क्या उस कमरे को
अब भी घर कहते हो?
beautiful

Faceless Maverick said...

कविता के शब्दों में चलचित्र की सी क्षमता है.
दृश्य के साथ एहसास का भी अनुभव होता है.

हमेशा की तरह!

सागर नाहर said...

बहुत सुन्दर...

सुभाष नीरव said...

अच्छी कविता है। सुन्दर !

कुमार विनोद said...

यादों के झरोखे से झांकते सवाल पूछते पूछते दिल में उतर जाते हैं- दबे पांव. कुछ सवाल जवाब पाकर लौट जाते हैं, लेकिन कुछ वहीं अटके रह जाते हैं-
क्या कभी दो कप चाय कह देते हो
अनजाने में...
और ख़ुद ही पी लेते हो?

कुमार विनोद said...

यादों के झरोखे से झांकते सवाल पूछते पूछते दिल में उतर जाते हैं- दबे पांव. कुछ सवाल जवाब पाकर लौट जाते हैं, लेकिन कुछ वहीं अटके रह जाते हैं-
क्या कभी दो कप चाय कह देते हो
अनजाने में...
और ख़ुद ही पी लेते हो?

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छी कविता है। शब्द बोलते हैं।

Amit K Sagar said...

इतने सवालों का तो खैर क्या करोगे
बस इतना बता दो...
क्या उस कमरे को
अब भी घर कहते हो?
--------------
बहुत ही उम्दा. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
---
http://ultateer.blogspot.com

Anonymous said...

zindagii ke is paDaaw tak main nahiin pahuncha lekin mahsoos zaroor kar sakta hoon...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब। इतने सारे प्यारे-प्यारे सवालों पर भारी पडा अन्तिम सवाल। इन खूबसूरत एहसासों को मेरा सलाम।
और हाँ, आपके ब्लॉग का ले-आउस बहुत प्यारा है। बधाई।

L.Goswami said...

sundar kavita..chitra ukerati huyi aankhon ke samne

महेन said...

बहुत अच्छी कविता है। कितनी सरल पर कितनी मोहक, जैसे निर्बाध बहता हुआ प्रेम। आप बधाई की पात्रा हैं।

Pritishi said...

Awesome!
Great writings, dear!

God bless you.
RC

Rahul said...

u r amazing...u know that....
iss duniya mai pyar bhi unko milta hai...jinko uske ahmiyat ka ahsaas nahi hota..gadhe sale!!!....kher chodiye...waise apki tareef kaise karu ...ye pata nahi..kyuki "tareef" bahut chota shabd lagat hai aapke liye

The guy sans voice said...

Amazing post!!!! I have read it at least three times and still don't feel like moving on.

Unknown said...

couldn't wait to look for you after reading few collections from "Teen Roj Isqa". Somewhere u have mentioned that you want to make movies and all. Well, I guess it would be smthing Guljar type....Mausam, Andhi, Ijajat etc.

with best wishes and loads of appreciation from JNU,

Abhishek.