Thursday, July 24, 2008

घर

मिल के बनाते हैं
एक घर
कुछ कुछ हमारे सपनो के जैसा

रजनीगंधा के फूलों सा महकता
चांदनी रातों सा दमकता

बादलों के जैसा फर्श
सूरज की किरणों की हलकी गर्मी

खिलखिलहटें गूँजें जहाँ
मुहब्बत गुनगुनाती रहे

एक घर जहाँ खुशियाँ
बिना दस्तक दिए आ सके

जहाँ ग़मों को आने को
दरार भी न मिले

जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें


तो लगे
मंजिल मिल गई है

13 comments:

डॉ .अनुराग said...

जहाँ ग़मों को आने को
दरार भी न मिले

जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें


तो लगे
मंजिल मिल गई है



इसमे उम्मीद ओर खुशी देख कर भला सा लगा......लिखती रहो इतना लंबा गैप मत लिया करो.....

Vinay said...

प्रेम को आप जिस तरह शब्दों में पिरोती हैं वह प्रयास सराहनीय है!

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह वाह क्‍या बात है सराहनीय

बादलों के जैसा फर्श
सूरज की किरणों की हलकी गर्मी

वैसे तो मकान हर जगह मिल जाएंगे लेकिन घर तो वही होता है जहां प्‍यार ही प्‍यार हो बेहतरीन कविता है आपकी अपनी बधाई के गुलदस्‍ते में एक फूल मेरा भी स्‍वीकार करो

Puja Upadhyay said...

isi weekend banglore shift kiya hai, aur net acces nahin hai isliye regular nahin likh rahi.
shubhkamnao ke liye shukriya

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा...वाह!

नीरज गोस्वामी said...

जहाँ ग़मों को आने को
दरार भी न मिले
जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें
तो लगे
मंजिल मिल गई है...
पूजा जी बेहद खूबसूरत घर की कल्पना की है आप ने...बहुत ही अच्छी तरह से सजाया है इसे अपने भावों से...अद्भुत.
आज आप के ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और मुझे अफ़सोस हुआ की मैं पहले क्यूँ नहीं आया..आप बहुत अच्छा तो लिखती ही हैं आप के विचार और भाव भी कमाल के हैं. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये.
नीरज

pallavi trivedi said...

bahut khoobsurat....waah

pallavi trivedi said...

bahut khoobsurat....waah

अंगूठा छाप said...

lagataar bahut shandaar!




badhai!!

Ila's world, in and out said...

पहली बार आपके ब्लोग पर आयी,सच मानिये,बहुत अच्छा लगा यहां आकर.सभी रचनायें बहुत सुन्दर हैं.और हां आपके घर की कल्पना से मिलता जुलता ही मेरा घर भी है.

केतन said...

जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें


तो लगे
मंजिल मिल गई है


ek bahut hi pyara gana yaad aa gaya apke is kalaam ko dekhkar ...

Dekho maine dekha hai ye ik sapna,
phooloN ke shahar meiN ho ghar apna ...


hamesha ki tarah ... tasavvur-o-taseer ... kamaal

art said...

लाजवाब अंदाज़-ए-बयां !

प्रवीण पराशर said...

ghar k bare main .. baat kar k aapne ghar ki in pyare lemhoon ki yaad dila di , thanks ji