मिल के बनाते हैं
एक घर
कुछ कुछ हमारे सपनो के जैसा
रजनीगंधा के फूलों सा महकता
चांदनी रातों सा दमकता
बादलों के जैसा फर्श
सूरज की किरणों की हलकी गर्मी
खिलखिलहटें गूँजें जहाँ
मुहब्बत गुनगुनाती रहे
एक घर जहाँ खुशियाँ
बिना दस्तक दिए आ सके
जहाँ ग़मों को आने को
दरार भी न मिले
जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें
तो लगे
मंजिल मिल गई है
13 comments:
जहाँ ग़मों को आने को
दरार भी न मिले
जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें
तो लगे
मंजिल मिल गई है
इसमे उम्मीद ओर खुशी देख कर भला सा लगा......लिखती रहो इतना लंबा गैप मत लिया करो.....
प्रेम को आप जिस तरह शब्दों में पिरोती हैं वह प्रयास सराहनीय है!
वाह वाह क्या बात है सराहनीय
बादलों के जैसा फर्श
सूरज की किरणों की हलकी गर्मी
वैसे तो मकान हर जगह मिल जाएंगे लेकिन घर तो वही होता है जहां प्यार ही प्यार हो बेहतरीन कविता है आपकी अपनी बधाई के गुलदस्ते में एक फूल मेरा भी स्वीकार करो
isi weekend banglore shift kiya hai, aur net acces nahin hai isliye regular nahin likh rahi.
shubhkamnao ke liye shukriya
बहुत उम्दा...वाह!
जहाँ ग़मों को आने को
दरार भी न मिले
जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें
तो लगे
मंजिल मिल गई है...
पूजा जी बेहद खूबसूरत घर की कल्पना की है आप ने...बहुत ही अच्छी तरह से सजाया है इसे अपने भावों से...अद्भुत.
आज आप के ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ और मुझे अफ़सोस हुआ की मैं पहले क्यूँ नहीं आया..आप बहुत अच्छा तो लिखती ही हैं आप के विचार और भाव भी कमाल के हैं. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये.
नीरज
bahut khoobsurat....waah
bahut khoobsurat....waah
lagataar bahut shandaar!
badhai!!
पहली बार आपके ब्लोग पर आयी,सच मानिये,बहुत अच्छा लगा यहां आकर.सभी रचनायें बहुत सुन्दर हैं.और हां आपके घर की कल्पना से मिलता जुलता ही मेरा घर भी है.
जहाँ तुम हो मेरे साथ
और शाम को थक के लौटें
तो लगे
मंजिल मिल गई है
ek bahut hi pyara gana yaad aa gaya apke is kalaam ko dekhkar ...
Dekho maine dekha hai ye ik sapna,
phooloN ke shahar meiN ho ghar apna ...
hamesha ki tarah ... tasavvur-o-taseer ... kamaal
लाजवाब अंदाज़-ए-बयां !
ghar k bare main .. baat kar k aapne ghar ki in pyare lemhoon ki yaad dila di , thanks ji
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