Friday, October 08, 2010

तसव्वुर


बरसों बीते तुमको अपनी आँखों से देखे
आज तुम्हारी सारी पुरानी तसवीरें देखी हैं

जानां तुम अब भी वैसे ही दिखते होगे क्या?

Tuesday, April 06, 2010

शार्पनर

कागज़ पर कई बार खोलने और बंद करने के कारण आये निशान हैं। तहें लगभग कट चुकी हैं। अन्दर थोड़ा बेतरतीबी से चिपकाया हुआ एक थोड़ा टेढ़ा सा वृत्त है, जैसे फेविकोल लगाते हुए हाथ कांप गए हों। वृत्त की कटावदार किनारी फीके लाल रंग की है जिसपर हलकी काली धारियां दिख रही हैं।
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"तुम्हारे पास शार्पनर टर है क्या?" दो चोटियों वाली एक बेहद मासूम सी लड़की ने थोड़ी सकुचाहट , थोड़ी बेपरवाही से पूछा था। उसके सर हिलाने पर उसने अपनी पेन्सिल बढ़ा दी थी, लड़के ने बड़े जतन से पेंसिल छीली और तीखी नोक बना कर वापस कर दी। उसने पेंसिल के छिलके गिराए नहीं, मुट्ठी में भींच लिए थे। उसे लगा वो कोई चोरी कर रहा है। तेज़ क़दमों से घर पहुंचा था और सबकी नज़रें बचाता हुआ दबे पाँव अपने कमरे में घुसा था। मुश्किल हुयी थी एक हाथ से फेविकोल सटाने में...गोल शायद थोड़ा टेढ़ा लगा था।
हफ़्तों उसे अपनी हथेली से उस   चोटी वाली लड़की की खुशबू आती थी।
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वो अब दो बच्चों का पिता है, ..दो प्यारे प्यारे गोल मटोल, गोरे चिट्टे उसने पेंसिल बनाने का बड़ा सा कारखाना खोल लिया है, एक खूबसूरत से घर में रहता है जिसमें बगीचे में झरने लगे हैं. अक्सर विदेश दौरा भी होता ही रहता है उसका। जब भी कहीं से वापस आता है बच्चों के बहुत कुछ लिए आता है, रंग बिरंगे खिलोने, विडियोगेम , .बहुत कुछ...पर कभी भी इस पूरे ताम झाम में उनके लिए बहुत सारे अलग अलग डिजाईन के 'शार्पनर' लाना नहीं भूलता।
कभी भी नहीं।

Monday, March 29, 2010

तुम्हारा नाम


गले में अटका हुआ है कब से
सालों से नहीं लिया है मैंने तुम्हारा नाम

शायद आखिरी हिचकी में होठों पे आ जाए

Friday, March 12, 2010

सिग्नेचर


आज मैंने नयी कलम खरीदी, निब देखने के लिए कागज पर घसीटा, बिना ध्यान दिए...फिर अचानक डर लगा कि जाने क्या लिखा होगा, कनखियाँ चुरा कर नीचे ताका...कागज पर मेरा ही नाम था. अरसा बाद, लगा जैसे अपने आप को फिर से पा लिया है. तुम्हारे नाम, तुम्हारी जिंदगी, तुम्हारी यादों और हर आदत से निकल आई हूँ. सुकून हुआ, यूँ तुम्हें याद कर के तुम्हें भूलने का.

अब लगता है मैं तुम्हें पूरी तरह भूल चुकी हूँ. शायद.