थोडा आसमां से...एक बादल के टुकडे से धूप की किरण ली
थोड़ी जमीन से भीगी मिटटी की सोंधी महक ली
थोड़े जंगलों में मदमाती हवाओं का बेलौसपना
थोडा पहाड़ी नदियों का गीत लिया
थोडा अपनी बाँहों का संबल
थोडा अपनी धड़कन की घबराहट भी ली
जाने कहाँ कहाँ से क्या उठा कर...
तुमने मुझे पूरा कर दिया
5 comments:
लगता है कि लहरों का ऐहसास के साथ जीना चाहती हैं।
kya kahe hum aapse
kuch kahne hi na diya
socha tha bahut kuch
magar unke liye ji na paya
dats a nice poem yaar
nice poems
जाने कहाँ कहाँ से क्या उठा कर...
तुमने मुझे पूरा कर दिया
bhai vah....
wow....
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