Monday, June 04, 2007

मंज़िल

थोडा आसमां से...एक बादल के टुकडे से धूप की किरण ली
थोड़ी जमीन से भीगी मिटटी की सोंधी महक ली

थोड़े जंगलों में मदमाती हवाओं का बेलौसपना
थोडा पहाड़ी नदियों का गीत लिया

थोडा अपनी बाँहों का संबल
थोडा अपनी धड़कन की घबराहट भी ली

जाने कहाँ कहाँ से क्या उठा कर...
तुमने मुझे पूरा कर दिया

5 comments:

उन्मुक्त said...

लगता है कि लहरों का ऐहसास के साथ जीना चाहती हैं।

Unknown said...

kya kahe hum aapse
kuch kahne hi na diya
socha tha bahut kuch
magar unke liye ji na paya


dats a nice poem yaar

Unknown said...

nice poems

डॉ .अनुराग said...

जाने कहाँ कहाँ से क्या उठा कर...
तुमने मुझे पूरा कर दिया

bhai vah....

***Punam*** said...

wow....