Tuesday, June 17, 2008

बारिशों की एक शाम...


एक भीगी उदास सी शाम है आज की
थकी हुयी भी लगती है, उनींदी सी है

और तुम भाग रहे होगे
शायद किसी डेडलाईन के पीछे

कब सुधरोगे आलसीराम?
चाय के भरोसे रात गुजारना छोड़ो

तभी तो ऐसा मौसम नहीं देखते हो
मुझे तो खैर क्या खाक याद करोगे

मैं भी रोज़ रोज़ नहीं याद करती हूँ तुम्हें
बस कभी कभी, जब बारिश होती है...तब

वो भी इसलिए
कि अब बारिशें उदास कर देती हैं

और याद आता है कि तुम कहते थे
"रोती हुयी बहुत सुंदर लगती हो"

7 comments:

रंजना said...

वाह क्या खूब कहा आपने !
आज सचमुच हमने ख़ुद को कोल्हू का बैल बना लिया है और रुमानियत को अलविदा कह खूंटे के चारों और घूमने को ही जिंदगी मान लिया है.

कुश said...

बहुत सुंदर..

अमिताभ मीत said...

बहुत ख़ूब.

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

mehek said...

bahut khubsurat

Vinay said...

achchha shabd-jadoo chalaaya hai... man ke bhaav bhramit ho jaate hain...

AMIT KUMAR said...

जैसा की आपको पहले भी लिख चुका हूँ. आप खूबसूरत ख्याल जीती हैं और उससे बेहतरीन उसे शब्दों में ढाल जिन्दा कर देती हैं. आपके ख्याल और आपको सलाम.